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* तृतीय सर्ग
२७१ गया, तब उसने मन्त्रीसे कहा- "हे मन्त्री ! प्यासके कारण मेरा जी छटपटा रहा है। यदि इसे दूर करनेका कोई उपाय न किया जायगा, तो यहीं मेरे जीवनका अन्त आ जायगा।” राजाकी यह बात सुन मन्त्रीने कहा-"राजन् ! चिन्ता न कीजिये । मैं आपको तृषा दूर करनेका उपाय करता हूँ।" यह कहकर उसने राजाको एक आँवला खानेको दे दिया। आँवला खानेसे क्षण भरके लिये राजाको तृप्ति मालूम हुई किन्तु थोड़ी देरके बाद फिर प्याससे व्याकुल हो उठा। उसने कहा-“मन्त्री ! मुझे तो फिर उसी तरह तृषा सता रही है। क्या करूँ ?” मन्त्रीने पुनः उसे सान्त्वना दे एक आँवला खानेको दिया। इसके बाद भी फिर वही अवस्था हुई। इस बार राजा तृषाके कारण मूर्छित भी हो गया। प्रभाकरने अब तोसरा आँवला भी उसे खिला दिया। इसी समय सौभाग्य वश राजाके कर्मचारी भी उन दानोंको खोजते हुए वहां आ पहुंचे। उन्हें देखते ही प्रभाकरने कहा-"पहले जल्दो दौड़ो और कहींसे थोड़ा जल ले आओ !” कहने भरको देर थी कि चारों तरफ अश्वारोहो अनुचर दौड़ पड़े और बातकी बातमें कहींसे पानी ले आये। राजाने जब जल पिया, तब उसकी तबियत ठिकाने आयी। इसके बाद सब लोग नगरको लौट आये। नगर निवासियोंने इस प्रकार राजाकी प्राण रक्षा हुई देख फिरसे उसका जन्मोत्सव मनाया। ___ कुछ दिनोंके बाद प्रभाकरने विचार किया, कि इस खामी, स्त्रो और मित्रकी भी परीक्षा करनी चाहिये और देखना चाहिये,