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* तृतीय सर्ग * ही कहा है कि मूर्ख मित्रकी अपेक्षा विद्वान शत्रु अच्छा-नादान दोस्तसे दाना दुश्मन भला। किसीने यह ठोकही कहा है कि
“शिरसा उमनः संगाद्धार्यते तंतवोपि हि ।
तेपि पादेन मृदयंते, पटेपि मलसंगताः॥" अर्थात्---"पुष्पके संगसे सूत भी शिरपर धारण किया जाता है, किन्तु वस्त्रमें रहनेपर जब मैलसे संग हो जाता है, तब वही सूत कूटा-पीटा और पटका जाता है।” मैंने अधम स्वामी, भार्या
और मित्रकी परीक्षा कर ली । अतएव अब मैं पिताके आदेशानुसार ही आचरण करूंगा। ___ इसी तरहको बातें सोचता हुआ वह सुन्दरपुर नामक एक नगरमें आ पहुँचा। इस नगरमें हेमरथ नामक एक राजा राज करता था। इस राजाके गुणसुन्दर नामक एक पुत्र था। जिस समय प्रभाकर यहां पहुँचा, उस समय गुणसुन्दर अपने सेवकोंके साथ नगरके बाहर किलो वृक्षके नीचे विश्राम कर रहा था। प्रभाकरने उसके पास जाकर उसे प्रणाम किया। राजकुमारने भी उसे भद्र पुरुष समझकर अपने पास बैठाया। प्रभाकर वहां बैठकर शास्त्र चर्चा करने लगा। कुछ देरके बाद राजकुमारने वहीं जलपान किया और प्रभाकरको भी जलपान कराया। इसके बाद दोनों जन एक दूसरेसे मीठी मीठी बातें करने लगे। किसोने ठीक ही कहा है कि प्रसन्न दृष्टि,शुद्धमन, ललितवाणी और नम्रता रखनेवाला मनुष्य विभव न होने पर भी अर्थीजनोंमें स्वाभाविक हो पूजा जाता है। अस्तु, बातचीत होनेपर राजकुमारने प्रभाकरसे