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* पाश्वनाथ-चरित्र
कह सुनाया। राजाने सोच विचार कर कहा-"देवीसे जाकर कहो, कि पुत्र चाहे जैसा हो, किन्तु वह बिनयी और विवेकी होना चाहिये। तदनुसार मन्चो पुनः देवीके पास आया और उनसे हाथ जोड़ कर कहने लगा-“हे भगवती! पुत्र चाहे जैसा दुर्गुणी हो, मुझे कोई आपत्ति नहीं है, किन्तु वह विनयी और विवेकी अवश्य होना चाहिये।” मन्त्रीकी यह बात सुन देवी “तथास्तु" कह, अन्तर्धान हो गयी। और मन्त्री भी उन्हें प्रणाम कर मन-ही-मन हर्ष मनाता घरकी ओर चला।
इस मन्त्रीको अपनी स्त्रीके अतिरिक्त एक वेश्या भी थी, जिस पर यह बड़ा प्रेम रखता था। जिस समय वेश्याको मालूम हुआ कि मन्त्री देवीके मन्दिरमें गया है, उस समयसे वह भी अन्न त्याग कर पृथ्वीपर सोने लगी। अंतमें उसने जब देवोकी प्रसन्नताका हाल सुना, तब उसने दासीको भेजकर मन्त्रीको अपने घर बुलाया। दासीने वेश्याकी ओरसे इस प्रकार अनुरोध किया, कि मन्त्री किसी तरह भी इन्कार न कर सका और उसे वेश्याके यहां जाना ही पड़ा। वहीं उसने स्नान भोजन किया और उस दिन वहीं राशि बितायी। देवीके आशीर्वादसे संयोगवश उसी दिन वेश्याको गर्भ रह गया । मन्त्रीको यह जानकर बड़ा दुःख हुआ। वह अपने मनमें पश्चाताप करता हुआ कहने लगा--"अहो ! मुझे धिक्कार हैं कि मैं अपनी कुलवतो स्त्रोके पास न जाकर यहीं रह गया और देवीका प्रसाद इस प्रकार कुपात्रके हाथमें चला गया। अब मेरा पुत्र भी दासी-पुत्र कहलायेगा, किन्तु क्या किया जाय। भावीको