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* पार्श्वनाथ-चरित्र *
लिये तप कैसा और धर्म कैला? विनयी पुरुष लक्ष्मी, यश और कीर्तिको भी प्राप्त करता है किन्तु दुर्विनयीको किसी कार्यमें भी सफलता नहीं मिलती। पर्वतोंमें जिस तरह मेरु, ग्रहोंमें जिस प्रकार सूर्य और रत्नोंमें जिस प्रकार चिन्तामणि श्रेष्ट है, उसी प्रकार गुणोंमें विवेके श्रेष्ट है। विवेकके बिना अन्य सभी गुण निर्गुणसे हो पड़ते हैं। किसोका कथन है कि जिस तरह नेत्रोंके विना रूप शोभा नहीं देता, उसी प्रकार विवेकके विना लक्ष्मी शोभा नहीं देती। विवेक रूपो दीपकके प्रकाशसे प्रकाशित किये हुए मार्गमें गमन करनेपर कलिकालके अन्धकारम भी कुशल पुरुषोंको कोई कष्ट नहीं होता, क्योंकि गुरुकी भांति विवेक कृत्यको दिखता है और सन्मित्रको भांति अकृत्य करनेसे रोकता है । इस सम्बन्ध सुमतिका दृष्टान्त शिक्षा प्रद है। वह इस प्रकार है :
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सुमतिकी कथा।
HTC ESEK* श्रीपुर नगरम श्रीसेन नामक एक राजा राज करता था। उसके श्रोसखी नामक एक स्त्री थी और सोमनामक एक मन्त्री था। मन्त्री निःसन्तान होनेके कारण सदैव दुःखी रहता था और उसे कहीं भी शन्ति न मिलती थी। एक बार राजाने मन्त्रीसे कहा-“हे मन्त्री ! तुम्हें निःसन्तान देखकर मुझे बड़ा दुःख होता