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* तृतोय सर्ग * . २३१ करनी चाहिये और रात्रि भोजनका सर्वथा त्याग करना चाहिये। अस्तु, अब हम लोग अपने मूल विषयपर लौट कर शेष अभक्ष्य पदार्थोंपर विचार करेंगे :___ बहुबीज-बहुतसे फल फूल अभ्यन्तर पट रहित केवल बीजमय होते हैं। इन्हें भक्षण करनेसे बीजके जीवोंकी हिंसा होती है, इसलिये यह अभक्ष्य माने गये हैं। जो फल अभ्यन्तर पट सहित बीजमय होते हैं, (यथा अनार, बिम्बाफल इत्यादि ) वे इस कोटि में नहीं आते अतएव अभक्ष्य नहीं माने जाते । ___ अनन्तकाय-यह अनन्तजीवोंके घातसे होनेवाले पातकका हेतुभूत होनेके कारण त्याज्य माना गया है। क्योंकि मनुष्यसे नारकी जीव, नारकी जीवसे देवता, देवताओंसे पंचेन्द्रिय तिर्यश्च, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चोंसे द्विइन्द्रियादिक और द्विइन्द्रियादिकोंसे भी अनिकाय जीव यथोत्तर असंख्यात गुने कहे गये हैं। इनसे भी पृथ्वीकाय, अएकाय और वायुकाय क्रमशः अधिक माने गये हैं। इन सबोंको अपेक्षा मोक्षजीवोंकी संख्या अनन्त गुनी है और अनन्तकाय जीव उनसे भी अधिक अनन्त गुने हैं। इस विषयपर आगे चलकर विशेष स्पष्टता पूर्वक विचार किया जायगा। ___ अचार-नींबू और बेल आदिके बोल आचारमें अनेक जन्तु उत्पन्न होनेको सम्भावना रहती है, इसलिये तीन दिनके बाद यह . अभक्ष्य माने जाते हैं।
बड़े-कच्चे, पक्के, या द्विदल अन्नके बनाये हुए, दूध, दही या मठ्ठ आदिमें भिगोये हुए बड़ोंमें भी अनेक प्रकारके सूक्ष्म जन्तु