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* पार्श्वनाथ चरित्र *
वादि नव तत्वोंको जानता हो, आस्रवको छोड़कर संवरका आदर करता हो, बीतराग देवके कहे हुए छः द्रव्योंको द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे सहित जानना हो, नामादि चार निक्षेपोंको स्वयं जानकर उनपर पूर्ण श्रद्धा करता हो, वीतरागके कहे हुए भावोंको सर्वथा सत्य मानता हो, उसे निसर्ग-रुचि समझा चाहिये ।
२ उपदेश - रुचि - जो जीव गुरुके उपदेशसे वीतराग देवके कहे हुए तत्वोंको जानकर उनपर पूर्ण रूपसे श्रद्धा रखता हो, वह उपदेश- रुचि कहलाता है।
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३ आज्ञा - रुचि - राग, द्वेष, अज्ञान आदि दोषोंसे रहित वीतराग देवकी आशाको मानने वाला और उसपर पूरी श्रद्धा रखनेवाला जीव आज्ञारुचि कहा जाता है ।
४ सूत्र- रुचि - जो जीव आगम-सूत्रोंको नियुक्ति, भाष्य चूर्णि और टीका सहित मानता हो, उनके श्रवण और पठनकी अत्यन्त चाहना रखता हो, वह सूत्ररुचि कहलाता है ।
५ बीज- रुचि - जो जीव गुरु-मुखसे एक पदके अर्थको सुनकर अनेक पदोंकी सहहणा कर सके वह बीजरुचि होता है ।
६ अभिगम - रुचि - जो सूत्र - सिद्धान्तोंको अर्थ सहित जानता हो और अर्थ- विचार सुननेकी खूब हो अभिलाषा रखता हो, वह अभिगम - रुचि कहलाता है ।
७ विस्तार - रुचि - जो जोव छओं द्रव्योंके गुण और पर्यायोंको चार प्रमाण और सात नयसे जानता हो, जाननेकी रुचि रखता हो, वह विस्तार- रुचि है ।