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* द्वितीय सर्ग हो रहा है । भीमका यह प्रश्न सुनकर देवने कहा-“हे राजकुमार ! यदि तु यह सब बातें जानना ही चाहता है, तो मुझे सुनाने में कोई आपत्ति नहीं। इस नगरका नाम हेमपुर है। यहां हेमरथ नामक एक राजा राज करता था। उसके चंड नामक एक पुरोहित था। वह सब लोगोंपर बड़ा द्वेष रखता था । राजाका स्वभाव भी बड़ा क्रूर और अविश्वासी था। यदि कोई साधारण अपराध भी करता, तो उसके लिये वह उसे बहुत कड़ी सजा देता था। एक दिन किसीने राजासे झूठ-मूठ चंडके सम्बन्धमें कोई चुगली की। राजाने तुरन्त ही उसपर विश्वास कर लिया और चंड पुरोहितपर गरम तेल छिड़क-छिड़क कर मार डाला। चंड अकाम निर्जरासे मृत्यु प्राप्त कर सर्वगिल नामक राक्षस हुआ। वह राक्षस स्वयं मैं ही हूँ। पूर्वजन्मके बैरके कारण इस नगरमें आकर मैंने सर्वप्रथम यहाँके लोगोंको अन्तर्धान कर दिया इसके बाद सिंहका रूप धारण मैंने इस राजा को पकड़ा था। इसके बाद जो कुछ हुआ, वह तुझे ज्ञात ही हैं। तेरे पुण्य प्रतापसे मैंने इसे छोड़ दिया। इसके बाद मैंने ही गुप्त रूपसे तेरा और तेरे मित्रका सत्कार किया और अब तेरी ही इच्छाके कारण मैं नगरके लोगोंको पुनः प्रकट कर रहा हूँ। कुमारने इस समय नज़र उठाकर देखा, तो वास्तवमें राजमहल और नगरको स्त्री-पुरुषोंसे भरा हुआ पाया। सब लोग अपनेअपने काममें इस तरह लगे हुए थे मानों उन्हें इस घटनाका कुछ ज्ञान ही नहीं है। यह देखकर भीमकुमार और मतिसागरको