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पार्श्वनाथ चरित्र - बारह मुहूर्तकी है। नाम और गोत्र कर्मकी जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की है और शेष कर्मोंकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्तकी है। जब जीव इन कमों की प्रन्थिको भेद करता है, तब उसे सम्यक्त्वकी प्राप्ति होती है। सम्यक्त्वकी प्राप्ति होनेपर वह धर्म प्रेमी होकर शनैः शनैः अपने मनको जिन धर्ममें दूढ़ करता है। इसके बाद वह गृहस्थ किंवा यति धर्मका पालन कर कर्ममल रहित हो, अन्तमें परमपदको प्राप्त करता है। इसलिये भव्य जीवोंको निरन्तर धर्मको ओर अपनी प्रवृत्ति रखनी चाहिये।" ___ गुरु महाराजका यह धमों पदेश सुन गर्वसे होंठ फड़ फड़ाते हुए कुबेरने कहा-“हे आचार्य ! आपने इतने समय तक व्यर्थ ही कंठशोष किया। आपकी यह सब बाते निःसार है। आपने जिन धर्म-कर्मादिका मण्डन किया, वे सब आकाश पुष्पके समान मिथ्या हैं । पहली बात तो यह है कि आत्मा कोई चीज ही नहीं है। इसलिये गुण निराधार होनेसे रहते ही नहीं-नष्ट हो जाते हैं । घट पट प्रभृति पदार्थों की तरह जो प्रत्यक्ष दिखायी देता है, वही सत्य है। जीव इन्द्रिय ग्राह्य नहीं है, इसलिये उसका अस्तित्व नहीं माना जा सकता। जीवका अस्तित्व न होनेसे धर्मका अस्तित्व भी लोप हो जाता है। जिस प्रकार मिट्टीके पिंडसे घट तैयार होता है, उसी तरह पृथ्वी, पानी, तेज, वायु और आकाश-- इन पंचभूतोंसे यह देहपिंड तैयार होता है। कुछ दिनोंके बाद यह पंचभूत अपने अपने पदार्थ में अन्तर्हित हो जाते हैं। जब जीव ही नहीं है, तो कष्टरूप तपसे सुख किसे और किस प्रकार हो