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* तृतीय सर्ग *
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यह चर्मरत्न हमारे प्रभावसे जलमें तैरता है या इस राजाके प्रभावसे, इसकी परीक्षा करनी चाहिये। यह सोचकर सब देवता चर्मरत्नको छोड़कर अलग हो गये । उनके अलग होते ही चर्मरत्न, जो अब तक लवण समुद्रमें तैर रहा था, डूब गया। उसके साथ ही उसपर जितने हाथी घोड़े और सैनिक आदि थे वे सब समुद्र - गर्भ में चले गये । लोभके फेर में पड़ा हुआ सुभूम भी उन्हींके साथ डूब गया और मृत्यु होनेपर सातवें नरकमें उसे स्थान मिला । अतः महा आरम्भ और महापरिग्रहके इन सब फलोंको जानकर विवेकी मनुष्योंको इनका त्याग करना चाहिये ।
मांस, अभक्ष्य और अनन्तकायके भक्षणसे भी नरककी प्राप्ति होता है । इसलिये इनका भी त्याग करना चाहिये । अभक्ष्य बाईस प्रकारके माने गये हैं, यथा---पांच उदुंबर, चार विगई, हिम, विष, ओले, सब तरहकी मिट्टी, रात्रि भोजन, बहुबीज, अनन्तकाय, आचार, बड़े, बैंगन, कोमल फलफूल, तुच्छफल और चलित रस, यह बाइसों अभक्ष्य त्याज्य हैं । इनकी व्याख्या इस प्रकार है :
वट, पीपल, गूलर, प्लक्ष और काकोदुंबर---इन पांच वृक्षोंके फलमें भुनगे नामक छोटे छोटे जोव होते हैं, इसलिये इनको भक्षण करना मना है । साधारणतः लोग भी इन्हें अभक्ष्य ही मानते हैं । मद्य, मांस, मधु और मक्खन यह चार महाविगई कहलाते हैं। इनमें अनेक संमूर्च्छिम जीव उत्पन्न होते हैं । कहा भो है कि- “ मद्य, मधु, मांस और मक्खन, इनमें इन्हीं वर्णके जन्तु उत्पन्न होते और मरते हैं । जैनेतर शास्त्रमें भी कहा है कि मद्य,