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* पार्श्वनाथ चरित्र *
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वृक्षसे नीचे गिरा हुआ फूल मारा मारा फिरता है, उसी तरह रात्रि भोजनके दोष से संसारमें प्राणी मारे मारे फिरते हैं और दुःखित होते हैं । इसके अतिरिक्त रात्रि भोजनके बर्तन आदि धोने में भी अनेक जीवोंका घात होता है। रात्रि भोजनके इन अपार दोषोंके कारण न केवल मनुष्यको संसार सागर ही तैरना कठिन हो जाता है, बल्कि इसके कारण उलूक, काक, मार्जार, गिद्ध, शकर, सर्प, बिच्छू और छिपकली प्रभृति योनियोंमें जन्म लेना पड़ता है।
दूसरे दर्शनोंमें भी कहा है कि जब साधारण स्वजनको मृत्यु होनेपर भी सूतक लगता है, तब दिवानाथ ( सूर्य ) का अस्त होने पर भोजन किस प्रकार किया जा सकता है ? रात्रि में जल रक्तके समान और अन्न मांसके समान हो जाता है इसलिये रात्रि भोजन करनेवालेको मांसाहार करनेका दोष लगता है । यह मार्कण्डेय ऋषिका कथन है । इसलिये विशेष कर तपस्वी और विवेकी गृहस्थ को रात्रिके समय जल और भोजन न लेना चाहिये । वेदान्तियोंके कथनानुसार सूर्य त्रयीतेजमय है, इसलिये कर्म उसी समय शुभ करना चाहिये, जिस समय उसका प्रकाश हो । रात्रिके समय आहुति, स्नान, श्राद्ध, देवार्चन, दान और खासकर भोजन कदापि न करना चाहिये । विवेकी मनुष्यको रात्रिके समय चारों आहार का त्याग करना चाहिये । जो वैसा न कर सकें, उन्हें अशन और खादिमका तो सर्वथा त्याग हो करना चाहिये । खादिम - सुपारी प्रभृति भी दिनके समय अच्छी तरह देख कर यत्न पूर्वक खाना