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* पार्श्वनाथ-चरित्र * चीजें सौंपकर उसे व्यापार करने और बड़े भाईके आदेशनुसार चलनेको आज्ञा दी। इसके बाद तीसरे पुत्र धनपालसे उसने कहा"तुमने अपने कामसे यह सिद्ध कर दिया है कि तुम व्यापार या धनसे सम्बन्ध रखने वाला कोई दूसरा काम करनेके लिये अयोग्य हो। इसलिये मैं तुम्हें धरके नौकर चाकरोंपर निगाह रखनेका
और कुटाई-पिसाई तथा रसोई प्रभृति घर गृहस्थोसे सम्बन्ध रखनेवालों कामोंपर दृष्टि रखनेका काम सौंपता हूँ।" इस प्रकार दो भाई अपनी-अपनी योग्यताके अनुसार धन सम्पत्तिके अधिकारी हुए और तीसरे भाईको प्रमादके कारण घरमें भी होन काम कर सेवकाई करना पड़ा। ___ हे भव्यजीवो! इस दृष्टान्तमें बहुत ही गूढ सिद्धान्त छिपे हुए हैं। वह मैं तुम्हें बतलाता हूं। ध्यानसे सुनो :-धन्यसेठ अर्थात् गुरु । उसके धनदेव प्रभृति तोन पुत्रोंका तात्पर्य सर्वविरति देशविरति और अविरतिसे है। मूलधन रूपी तीन रत्नोंकी जगह ज्ञान, दर्शन और चारित्रको समझना चाहिये। तीनों प्रकारके जीव इन रत्नोंसे व्यापार करनेके लिये मनुष्यजन्म रूपी नगरमें आते हैं। इनमेंसे प्रमाद न कर ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी बृद्धि करनेवाले सर्वविरति जीव देवगतिको प्राप्त करते हैं। दूसरे प्रकारके जीव जो अप्रमादसे व्यापार कर मूलधनको सुरक्षित रखते हैं, उन्हें पुनः मनुष्य जन्म मिलता है और वे सुख भोग करते हैं। तीसरे प्रकार के जीव प्रमादके कारण-निद्रा और विकथाके फेरमें पड़कर अपना मूलधन भी खो बैठते हैं अतएव उन्हें रौरव नरककी प्राप्ति