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* 'पाश्वनाथ चरित्र *
वेश्या की यह चिकनी चुपड़ी बातें सुनकर धनपाल वहीं रह गया और नाच मुजरा देखने एवम् विषय सेवन करनेमें दिन बिताने लगा। धीरे धीरे घेश्याने और भी जाल फैलाया । अब उसका समूचा खर्च धनपालके ही सिर आ पड़ा । वेश्या कभी वस्त्रोंकी मांग पेश करती और कभी आभूषणोंकी । धनपाल भी बिना 'उज्र उसे वे सब चीजें दिलवाता था । रात-दिन धनपालकी बदौलत वेश्याके यहां गुलछर्रे उड़ते । फल यह हुआ कि कुछ ही दिनोंमें धनपालके तीनों रत्न साफ हो गये । जब उसके पास शरीरके कपड़ोंको छोड़ और कुछ भी बाकी न रहा और वेश्याको मालूम हो गया, कि अब इसके पाससे एक पाई भी नहीं मिल सकती, तब उसने एक दिन धनपालको अपने घर से निकाल बाहर किया । धनपाल रोता कलपता नगरमें गया। वहां एक परिचित विटसे उसकी भेट हो गयी । धनपालने उससे सारा हाल कह कर शिकायत की, कि वेश्याने मुझे ठग लिया । विटने कहा - " मैं इसी वक्त चलकर तेरी तरफसे वेश्यासे लड़ाई करूंगा और तेरा धन तुझे वापस दिला दूंगा। लेकिन इस परिभ्रमके बदले कमसे कम तू अपने कपड़े पहले मुझे दे दे । धनपालने उसे बहुतेरा समझाया कि काम हो जानेपर मैं तुझे मुंह मांगी चीज देकर खुश करूंगा, किन्तु विट किसी तरह राजो न हुआ । अन्तमें धनपालको अपने कपड़े उतार ही देने पड़े। इसके बाद विट उन कपड़ों को हाथ कर धनपालके साथ वेश्याके यहां गया और उससे धनपालके रत्न लौटा देनेको कहा । वेश्याने उसी समय