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* पार्श्वनाथ-चरित्र - स्थिर किया। वह शीघ्रही नदी तटसे उठकर समीपके गांधमें गया। वहां किसी सज्जनके यहां उसने पानी मांगकर पिया। सज्जनने उसे पानी पिलानेके बाद उसका परिचय पूछा । राजाने कहा-“मैं क्षत्रिय, हूँ। यदि आपके पास मेरे योग्य कोई काम हो, तो बतलाइये, मैं खुशीसे कर सकता हूँ।" सज्जनने कहा“और तो कोई कार्य नहीं है किन्तु यदि तेरो इच्छा हो, तो मेरे यहां रह कर मेरा गृहकार्य कर सकता है। राजाने तुरत ही इसे स्वीकार कर लिया। इसके बदलेमें उसे सुस्वादु भोजन और वल मिलने लगे। अच्छा भोजन मिलनेके कारण कुछ ही दिनोंमें राजाकी कान्ति बढ़ गयी और इससे उसका चेहरा चमक उठा। एक दिन उसपर उसकी स्वामिनीकी दृष्टि पड़ गयी। स्वामिनी उसे देखतेही उसपर अनुरक्त हो गयो। अब वह बहुधा राजासे प्रेम सूचक बातें कहकर उसे अपने मोह-पाशमें फँसानेकी चेष्टा करने लगी। उसकी यह कुचेष्टा देखकर राजाको बड़ी चिन्ता हुई। वह दैवको सम्बोधित कर कहने लगा-“हे दैव! तूने मेरा राज्य, मेरा ऐश्वर्य और मेरे स्वजनोंको भी मुझसे छुड़ाया। मैंने भी उनकी कोई परवाह न की और अपने हृदयको पत्थर बना कर तृणवत् उनका त्याग किया, किन्तु अब तू मुझे कुमार्गगामी बना कर मेरा शील भी लूटना चाहता है ! मैं इसे प्राण रहते कभी न जाने दूंगा।" यह कहकर राजाने विचार किया, कि यहां रहकर अब शोलकी रक्षा करना कठिन हैं। स्वामिनीकी बात मानना और न मानना दोनों अवस्थामें मेरे लिये विपत्ति जनक है इस