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* पाश्वनाथ-चरित्रतुझे यह किसने बतलाया, है कि सद्धर्मसे सद्गति प्राप्त होती है ! यह सब झूठ है। हमें तन मन और वचनको इच्छित वस्तु देकर सदेव परितुष्ट रखना चाहिये। कुबेरको यह बात सुन राजकुमार मौन हो रहा । उसने अपने मनमें स्थिर किया कि दुराग्रही मनुष्योंसे विवाद करने पर मतिभ्रंश होता है, इसलिये इस समय कुछ बोलना ठीक नहीं। कभी मौका मिलनेपर किसी ज्ञानी मुनिराज द्वारा इसे शिक्षा दिलाऊंगा।" ___एक बार अनेक मुनियोंके साथ लोकचन्द्रसूरि नामक एक मुनीश्वरका वहांके अशोकवनमें आगमन हुआ। अनेक नगरजन उन्हें वहां वन्दन करने गये। कुबेरको शिक्षा दिलानेका यह उपयुक्त अवसर समझ कुमार भी कुबेरको साथ ले वहां गये। कुमारने विधिपूर्वक शुद्ध भावसे मुनीश्वरको बन्दन किया। कुमारके अनुरोधसे कुबेरने भी उन्हें प्रणाम किया। सब लोगोंके समुचित आसन ग्रहण करनेपर मुनीश्वरने इस प्रकार धर्मोपदेश देना आरम्भ किया:--
हे भव्य जीवो! यह जीव स्वभावसे स्वच्छ होनेपर भी कर्म मलसे मलीन होकर चतुर्गतिरूप संसारमें भ्रमण कर नाना प्रकारके दुःख भोग करता है। कर्म आठ प्रकारके हैं, यथा-(१) शानावरणीय (२) दर्शनावरणीय (३) वेदनीय (४) मोहनीय (५) नाम (६ ) गोत्र (8) आयु और (८) अन्तराय। इनमें ज्ञानके पांच भेद हैं, यथा-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान । इन ज्ञानोंको अच्छादित करने (ढक