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तृतीय सर्ग।
इस जंबूहीपके पश्चिम महाविदेहके भूषण रूप सुगन्धी नामक विजयमें कल्पवृक्षके समान दानियोंसे युक्त, अप्सराके समान मनोहर स्त्रियोंसे और देवमन्दिरोंसे सुशोभित शुभंकरा नामक एक परम रमणीय नगरी है। वहां सकल गुण-निधान वन वीर्य नामक राजा राज करता था। उस राजाकी कीर्ति दिग दिगन्तमें व्याप्त हो रही थी। उसने अपने समस्त शत्रुओंपर विजय प्राप्त कर उन्हें वश किया था। उसकी प्रजा उससे बहुत प्रसन्न
और सन्तुष्ट रहती थी। देशदेशान्तरमें उसके यशोगान गाये जाते थे। उसके राज्यमें इतियां ( उपद्रव) तो कभी होती ही न थी। उसका राज्य बहुत विस्तृत होने पर भी अपने इन गुणोंके कारण उसे उसका प्रबन्ध करने में कोई कष्ट न होता था। उसके लक्ष्मीवती नामक एक पटरानी थी। राजाकी भांति वह भी लजा, विनय, साधुत्व और शील प्रभृति अनेक सद्गुणोंकी खानि थी।