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* पार्श्वनाथ-चरित्र - भद्र ! मैं इसका उपाय बतलाती हूं। इस नगरके बाहर पूर्व दिशामें सरोवरके तटपर श्रीदेवीका एक मन्दिर है। उस मन्दिर में अवधूत वेशमें एक मनुष्य रहता है । तू वहां जाकर उसे भोजनके लिये निमत्रण दे आ। जब वह भोजन करने आये, तब उसे भोजन कराकर कमरेके मध्य भागमें ले जाना और उसे पीटना। इससे वह मनुष्य सोनेका हो जायगा। फिर उसे खण्डित कर तू चाहे जितना सुवर्ण खर्च करेगा, किन्तु वह ज्योंका त्यों हो जाया करेगा।” यह कह देवी अन्तर्धान हो गयीं। कुबेर सवेरा होते ही देवीके मन्दिरमें पहुंचा और उस अवधूतको निमन्त्रण दे आया। भोजन करानेके बाद उसे मारनेपर वह वास्तवमें सोनेका हो गया। इस अक्षय स्वर्ण प्रतिमाको प्राप्तकर कुबेर फिर पूर्ववत् ऐश्वर्य भोग करने लगा। ___ कुबेरके पड़ोसमें एक नापित रहा था। किसी प्रकार इस सुवर्ण प्रतिमाकी बात उसने सुन ली। उसने सोचा कि शायद सभी महाजन इसी तरह धनी होते हैं। मैं भी क्यों न इस उपाय को काममें ला सदाके लिये दुःख दारिद्रसे मुक्त हो जाऊ? यह सोचकर वह भी उस मन्दिर में गया और वहां किसी साधुको देख उसे निमन्त्रण दे आया । साधु जब भोजन करने आया, तब उसने भी खिला पिलाकर उसके मस्तकपर प्रहार किया। किन्तु यह साधु ऐसा न था, जो मार पड़ते ही स्वर्णप्रतिमा बन जाय । यह तो मार पड़ते ही चिल्लाने लगा। उसकी पुकार सुन शीघ्रही वहां कोतवाल आया और नापितको गिरफ्तार कर, उसे दण्ड