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* पार्श्वनाथ-चरित्र * बाद स्वजन स्नेहियोंको निमन्त्रित कर मैं किसी अच्छे ब्राह्मणकी कन्यासे विवाह करूंगा। उसे सर्वगुण सम्पन्न पुत्र उत्पन्न होगा तब मैं बड़े प्रेमसे उसका लालन-पालन करूंगा। किसी दिन जब मैं बाहरसे आऊंगा और लड़का आँगनमें रोता हुआ दिखायी देगा, तो मैं अपनी स्त्रीपर सख्त नाराज होऊँगा और उसे लातसे ठुकरा दूंगा।" इस तरह तरंगोंके प्रवाहमें बहते-बहते भिक्षुकको आस पासका कुछ भी ख़याल न रहा और उसने सचमुच अपना पैर पटक दिया। पैरोंके पासही सत्तू का घड़ा रखा हुआ था। वह पाद प्रहारके कारण चूर-चूर हो गया और सारा सत्तू मिट्टीमें मिल गया। यह देखकर कार्पटिकको बहुत दुःख हुआ और उसके सारे मनोरथोंपर पानी फिर गया। इस दृष्टान्तसे शिक्षा ग्रहणकर विवेकी मनुष्योंको मिथ्यासंकल्प विकल्प कभी न करना चाहिये।
ऊपर जिन पांच अणुव्रतोंका वर्णन किया गया है, इनका पालन करनेसे गृहस्थ शनैः शनै: मुक्ति मार्गकी ओर अग्रसर होता है। इन्हीं व्रतोंको सूक्ष्म विभेदसे पालन करनेपर पांच महाव्रत हो जाते हैं। इन पांच महाव्रतोंका पालन करनेसे साधु पुरुषोंको शीघ्रही स्वर्ग और मोक्षकी प्राप्ति होती है इसलिये ज्ञानी मनुष्योंको यथा शक्ति इनकी आराधनामें लगे रहना चाहिये। __ मुनिराजका यह धर्मोपदेश सुन लोगोंने अनेक प्रकारके नियम, अभिग्रह और देशविरतिका स्वीकार किया। किरणवेग राजा क्रोध, लोभ, मोह और मदसे रहित हो गया और उसे संवेगकी प्राप्ति हुई। उसने गुरुको प्रणाम कर कहा-“हे भग