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* पाश्वनाथ चरित्र *
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धनसारको कथा
भारतवर्ष में महामनोहर मथुरा नामक एक नगरी है । उसमें धनसार नामक एक महाजन रहता था । उसके पास छाँसठ कोटि रुपये थे । इनमेंसे बाईस करोड़ उसने जमीनमें गाड़ रखे थे, बाईस करोड़ लेन-देनमें लगा रखे थे और बाईस करोड़से वह देश देशान्तर में व्यापार करता था । इतना धन होनेपर भी संतोष न होनेके कारण उसे कभी शान्ति न मिलती थी। न तो वह किसा पर विश्वास करता था, न अपने आराम के लिये एक पैसा खर्च करता और न कभी किसीको कुछ दान ही देता था। समुद्रके क्षार जलकी भाँति उसका धन अभोग्य था । उसके यहां कभी कोई भिक्षुक भिक्षा मांगने आता तो उसका सिर दुखने लगता । उसकी याचना सुनता, तो उसका जी जलने लगता और उसे कोई कुछ दे देता, तो उसे मूर्च्छा आ जाती और वह तुरत उसे दान देने से रोकता । दानको बात तो दूर रही, वह कभी अच्छा अन्न और घी प्रभृति उत्तम पदार्थ भी न खा सकता था । यदि कोई पड़ोसी कुछ दान करता, तो वह भी उसके लिये असा हो जाता था । यदि धर्म कार्यमें एक पैसा भी खर्च करनेकी कोई उसे सलाह देता, तो उसकी बोलो हो बन्द हो जाती । न