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* पाश्वनाथ चरित्र #
विपत्ति में भी तुम लोगोंने अखंड शीलका पालन किया, इसलिये इसी जन्म में तुम्हें पुन: राज्य सुखकी प्राप्ति हुई । "
मुनिका धर्मोपदेश और अपने पूर्वजन्मका वृत्तान्त सुनकर राजा रानीको संवेगकी प्राप्ति हुई और उन दोनोंने अणुव्रत ग्रहण किये। मुनि भी विहार कर चले गये । इसके बाद राजाने अनेक जिन मन्दिर निर्माण कराये। उनमें जिन प्रतिमाओंकी स्थापना कर राजा विधि पूर्वक प्रतिमाओंकी पूजन करने लगा । दयालु, सत्यवादी, पर-द्रव्यसे विमुख, सुशील, सन्तोषी और परोपकार परायण बह राजा रानीके साथ अखंड गार्हस्थ्य धर्मका पालन कर अन्तमें मृत्यु होनेपर स्वर्ग गया । सुन्दर राजाका यह चरित्र सुनकर भव्य जीवोंको अखण्ड शीलव्रतका पालन करना चाहिये ।
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अब हम लोग पाँचवें अणुव्रत के सम्बन्धमें विचार करेंगे । पांचवें अणुव्रतका नाम है - परिग्रह परिमाण । इसके भी यह पांच अतिचार वर्जनीय हैं । (१) धन धान्य ( २ ) द्विपद और चतुष्पद ( ३ ) क्षेत्र और वस्तु ( ४ ) सामान्य धातु ( ५ ) सोना चांदी - इनके परिमाणका अतिक्रम करनेसे ये अतिचार लगते हैं । परिग्रह परिमाण के लिये गुरुके निकट प्रतिज्ञा करनी चाहिये और लोभका त्याग करना चाहिये। कहा भी है कि धन हीन मनुष्य सौ रुपये चाहता है, सौवाला हजार चाहता है, हजार वाला लाख चाहता है, लाखवाला करोड़की इच्छा करता है, करोड़पती राज्य चाहता है, राजा चक्रवर्तीत्व चाहता है, चक्र