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* द्वितीय सर्ग * था । अन्तमें छोटा भाई अपना भाग लेकर बड़े भाईसे अलग हो गया। परन्तु दान और पुण्यके प्रभावसे बड़े भाईकी सम्पति दिन-पर-दिन बढ़तो ही गयो और छोटा भाई दान न करनेके कारण दरिद्री हो गया। कहा भी है कि कूप, आराम और गवादि को सम्पत्ति जिस प्रकार देनेसे बढ़ती है, उसी तरह दान देनेसे धन भी बढ़ता है। जिस तरह अच्छे महाजनके यहां लोग बारम्बार रुपया जमा करते हैं। उसी तरह लक्ष्मी भी दानी पुरुषके यहां बारम्बार आकर आश्रय ग्रहण करती है, किन्तु कृपण मनुष्य उसे बन्धनमें रखना चाहते हैं, इसीलिये वह उनके यहां दुबारा आनेका नाम भी नहीं लेती। ___ बड़े भाइकी उन्नति देख छोटे भाईको ईर्ष्या उत्पन्न हुई और उसने राजासे सच-झूठ लगाकर बड़े भाईकी सब सम्पत्ति लुटवा लो। इससे बड़े भाईको वेराग्य आ गया। उसने किसी सुसाधुके निकट प्रवज्या ले ली और निरतिचार चारित्र पालन करते हुए अन्तमें जब उसको मृत्यु हुई, तो वह सौधर्म देवलोकमें प्रवर देवता हुआ। छोटे भाईकी लोकनिन्दा होने एवं 'अज्ञान तप करनेके कारण मृत्यु होनेपर वह असुर हुआ। वह छोटा भाई तू और बड़ा भाई मैं ही हूँ। तू असुर योनिसे निकलकर यहां उत्पन्न हुआ और मैं सौधर्म देवलोकसे च्यवन होकर ताम्रलिप्तो नगरमें महाश्रेष्टीका पुत्र हुआ। यथा समय यति हो केवल ज्ञान प्राप्त कर मैं इस प्रकार विचरण कर रहा हूं। तूने द्वेषके कारण दानका अंतराय किया था, इसलिये कर्म विपाकसे तुझे कृपणता प्राप्त