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* द्वितीय सर्ग मुझे क्या करना चाहिये ! नगरके लोगोंने मेरा नाम महाकृपण रखा है और सभी यह बात जानते हैं कि मेरे पास करोड़ों रुपये की सम्पदा थी। अब निर्धन होकर इन लोगोंके बीचमें रहना और हँसी कराना ठीक नहीं। इसलियेअच्छा हो, यदि मैं बचे हुए धनसे कुछ माल लेकर समुद्रमार्गसे व्यापार करने चला जाऊं। इसमें यथेष्ट लाभ होनेकी संभावना है।" यह सोच कर उसने दस लाखका मेय ( नापकर बेचने योग्य) परिच्छेद (काटकर बेचने योग्य ) गण्य ( गिनकर बेचने योग्य ) और तोलनीय (तौल कर बेचने योग्य ) चार तरहका किराना खरीद किया और उसे नौकामें भरकर अनेक नाविकोंके साथ विदेशके लिये प्रस्थान किया। किन्तु दुर्भाग्यवश कुछ दूर जाते ही आकाशमें बादल घिर आये, विजली चमकने लगो और इतने जोरका तूफान आया कि नौका समुद्रमें पत्त की तरह हिलने डोलने लगी। नाविकोंने यथा शक्ति उसे सम्हालनेको चेष्टा की, पर अन्तमें उनके धैर्यका भी बांध टूट गया और सब लोग किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये। कुछ लोग प्राण बचानेके लिये समुद्र में कूद पड़े, और कुछ लोग नौका. मेंही बैठकर अपने जीवनकी अंतिम घड़ियां गिनने लगे। कोई अपने घरके मनुष्योंको स्मरण करता था, कोई देवताओंका स्मरण कर रहा था तो कोई मृत्यु भयसे बेतरह रो रहा था। इसी समय नौका एक चट्टानसे जा टकराई और देखते-ही-देखते उसके टुकड़े टुकड़े हो गये। नौका टूटते ही अन्य लोगोंके साथ धनसार भी समुद्र में जा पड़ा, किन्तु सौभाग्यवश उसके हाथमें