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* पाश्वनाथ चरित्र *
हुई। अब तू उस दुस्कृत्यकी गर्हणा कर और जो धन प्राप्त हो उसे सुपात्रको देना आरम्भ कर । इससे तेरा कल्याण होगा। कहा भी है, कि “जो दिया जाय या भोग किया जाय वहो धन है । शेषको कौन जानता है कि वह कब और किसके काम आयेगा ? जिस प्रकार जारसे उत्पन्न पुत्रको प्यार करते देख दुश्चारिणो स्त्री हँसती हैं, उसी तरह शरीर की रक्षा करते देख मृत्यु और धनकी रक्षा करते देख वसुन्धरा हंसती है । धनका उपभोग करनेसे इस जन्ममें सुख मिलता है और दान करनेसे दूसरा जन्म सुधरता है, किन्तु हे बन्धु ! यदि धन न तो उपभोग किया जाय, न दान ही दिया जाय, तो धन प्राप्त होनेसे क्या लाभ ? अनित्य, अस्थिर और असार लक्ष्मी तभी सफल हो सकती है, जब दान दी जाय या भोग की जाय, क्योंकि चपलाकी भांति लक्ष्मी भी किसीके यहां ठहर नहीं सकती । दानके पांच प्रकार है ।
यथा :---
"अभय सुपत्तदाखं, अणुकम्पा उचिय कित्तिदाणं च । मुख भमित्रो, तिन्निवि भोगाइमा बिन्ति ॥ "
अर्थात् - "अभय, सुपात्र, अनुकम्पा, उचित और कार्त्ति - यह पांच प्रकारके दान हैं। इनमेंसे प्रथम दो दान मोक्षके निमित्त और अन्तिम तीन दान इस लोक में भोगादिकके निमित्त हैं। जो पुरुष अपनी लक्ष्मीको पुण्यकार्यमें व्यय करता है, उसे वह बहुत चाहती है। बुद्धि उस पुरुषको खोजती है, कोर्त्ति देखती है, प्रीति चुम्बन करती है, सौभाग्य सेवा करता है, आरोग्य आलिङ्गन करता है,