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*पाश्वनाथ-चरित्र
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वन्दन किया। इसके बाद उसने हाथीका रूप त्याग कर यक्षका रूप बना लिया। यहो उसका प्रकृत रूप था। उसे देखते ही मुनि. राजने कहा-“अहो यक्षराज! मालूम होता है कि तुम्ही अपने पुत्र हेमरथको बचानेके लिये गजका रूप किये भीमकुमारको यहाँले आये थे ? यक्षने कहा-"मुनिराज! आपकी धारणा ठीक ही है। पूर्व जन्ममें हेमरथ मेरापुत्र और मैं उसका पिता था । इसी स्नेहके कारण मैं हेमरथको बचानेके लिये व्याकुल हो उठा और भीमकुमारको यहाँ ले आया। पूर्व जन्ममें सम्यक्त्व स्वीकार कर उसे मैंने कुसंसर्गमें पड़कर दूषित किया था, इसीलिये मैं व्यन्तर हुआ हूँ । कृपया मुझे फिर सम्यक्त्व प्रदान कीजिये, जिससे मेरा कल्याण हो।" यक्षकी बात सुन मुनिराजने उसको और साथ हो राक्षस तथा राजा आदिको भी विधिपूर्वक सम्यकत्व प्रदान किया। इसके बाद भीमने पाखण्डोके संसर्गसे मलीनता प्राप्त सम्यकत्वके लिये शुद्धि मांगो। मुनिराजने उसे तदर्थ भी आलो. चना प्रदान को। अनन्तर कुमार प्रभृति सब लोग मुनीश्वरको वन्दन कर हेमरथके महलको लौट आये।
महलमें आनेपर हेमरथने कुमारको प्रणामकर कहा-"हे कुमार | मैं आपकी कृपासे ही जी रहा हूँ और राज्य कर रहा हूं। आपने मुझपर जो उपकार किया है, उसके लिये मैं आजन्म आपका ऋणी रहूंगा। आपके इन उपकारोंका बदला किसी तरह चुकाया ही नहीं जा सकता, फिर भी मैं आपसे एक प्रार्थना करता हूं। वह यह कि मेरे मदालसा नामक एक कन्या है, वह सर्वगुण सम्पन्न