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* पार्श्वनाथ चरित्र *
प्रयोग कर दोनोंने दारुण कार्मोकी नींव डाली। इसके बाद यथा समय उन दोनोंको सद्गुरुके योगसे श्रावकत्वकी प्राप्ति हुई । इस अवस्थामें दोनोंने विधिपूर्वक अनशन कर समाधि द्वारा मृत्यु प्राप्त की । मृत्युके बाद दोनों स्वर्ग गये। वहांसे सर्गका जीव च्युत होकर कुमारदेव नामक एक सेठके यहां पुत्र रूपमें उत्पन्न हुआ और उसका नाम अरुणदेव रखा गया | चन्द्राने पाटलिपुरके जसादित्य नामक महाजनके यहां पुत्री रूपमें जन्म लिया। यहां उसका नाम देयिणी पड़ा । दैवयोगसे इन दोनोंके विवाहकी बात पक्की हो गयी और कुछ दिनोंके बाद दोनोंका विवाह कर देना स्थिर हुआ । किन्तु विवाह होनेके पहले ही अरुणदेवको व्यापार करने की सूझी अतएव उसने समुद्र मार्ग से काह द्वीप की ओर प्रस्थान किया । दैवदुर्विपाकसे समुद्र में तूफान आया और उस तूफानमें अरुणदेवकी नौका चूर-चूर हो गयी । अरुणदेव समुद्रमें जा पड़ा, किन्तु महेश्वर नामक अपने एक मित्रकी सहायता से किसी तरह उसके प्राण बच गये। दोनों 'जन वहांसे घूमते घामते कुछ दिनों में पाटलिपुर पहुँचे। वहां महेश्वरने अरुणदेवसे कहा - "हे मित्र ! इस नगर में तेरी ससुराल है। चलो हम लोग वहीं चल कर आरामसे रहें ।” अरुणदेवको मित्रकी यह बात अच्छी न लगी । उसने कहा - " इस दुखी अवस्थामें ससुराल जाना ठीक नहीं।” महेश्वरने कहा – “अच्छा, तब तु यहां नगर के बाहर कहीं आराम कर। मैं नगरसे कुछ खानेपीनेका समान ले आऊँ । यह कहकर महेश्वर नगर में गया और
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