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• पार्श्वनाथ चरित्र क्या नहीं करना पड़ता ? किसीने सच ही कहा है कि पेटके कारण पुरुषको मर्यादाका त्याग करना पड़ता है, पेटके कारण यह नीच जनोंकी सेवा करता है, पेटके कारण वह दिनवचन बोलता है, पेटके कारण उसका विवेक नष्ट हो जाता है, पेटके कारण उसे सत्कीर्तियोंकी इच्छा त्याग देनी पड़ती है और पेटहीके कारण उसे नाच सीखकर भांड तक बनना पड़ता है। सिद्धड़के परिवारकी भी यही दशा थी। उनके लिये उनका घर ही जंगल हो रहा था। किसीने कहा भी है कि जहां उच्च कोटिके स्वजनोंका संग नहीं होता, जहां छोटे-छोटे बच्चे खेलते-कूदते न हों, जहां गुणोंका आदर-सत्कार नहीं होता हो, वह घर जंगलसे भी बढ़कर है। _ सिद्धड़ इसी तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहा था ; किन्तु उसे बहुत दिनोंतक इस अवस्थामें न रहना पड़ा। कुछ ही दिनोंमें उसकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु क्या हो गयी, मानों वह इस दुःसह दुःखोंसे छुटकारा पा गया। अब उसके घरमें उसकी स्त्री चन्द्रा और उसका पुत्र सर्ग यही दो जन रह गये। इनका रहा सहा सहारा भी इस प्रकार छिन जानेसे इन्हें दूसरेही दिनसे अपने-अपने पेटकी चिन्ताने आ घेरा। चन्द्रा दासी वृत्ति करने लगी। किसीका पानी भर देती, किसीके बर्तन मल देती, तो किसीका कोई और काम कर देती और सर्ग लकड़हारेका काम फरने लगा। वह रोज जंगलसे लकड़ियां काट लाता और उन्हें शहरमें बेचकर किसी तरह पेट पालता। एक दिन किसी साहू