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* पार्श्वनाथ चरित्र व्याख्या करनेमें बड़ा हो निपुण निकला। विशुद्ध मति नारद गुरु प्रसादसे समस्त शास्त्रोंमें विशारद हो अपने देश चला गया। इधर गुरुका योग मिलनेपर अभिचन्द्र राजाने भी दीक्षा ले लो। इसलिये वसु वसुदेवके समान राजा हुआ। यह वसु संसारमें सत्यवादीके नामसे प्रसिद्ध हुआ और बाल्यावस्थाकी भांति इस समय भी वह सत्यवचनको दृढ़ताके साथ पालन करता रहा। - किसी समय एक व्याध जंगलमें शिकार खेलने गया। वहां उसने एक मृगपर कई वाण छोड़े, किन्तु वे वाण उसे न लगकर बीचहीमें किसी वस्तुसे टकरा कर गिर गये। यह देख व्याध इसका पता लगानेके लिये उस स्थानमें गया। वहां हाथ लगानेपर उसे मालूम हुआ कि उस स्थानमें एक ऐसी शिला थी, जो न केवल पारदर्शक ही थी, बल्कि वह ऐसो भो थी कि आंखोंसे दिखाई भी न पड़ती थी। जब उसे हाथ लगाया जाता तो केवल यही मालूम होता, कि वहांपर कोई शिला है। व्याधने इसी शिलाके इस पारसे मृगको देखा था; किन्तु बीचमें वह शिला आ जानेके कारण वे बाण मृगतक न पहुँच सके। व्याधने सोचा कि यह शिला वसुधापति वसुराजाको भेंट देनी चाहिये । यह सोचकर वह उस शिलाको अपने घर उठा लाया और गुप्त रीतिसे वसुराजाको वह भेंट दे दी। राजाको यह शिला देखकर बहुत ही आनन्द हुआ और उसने उस व्याधको बहुत कुछ इनाम देकर उसे भलीभांति सन्तुष्ट किया। इसके बाद राजाने गुप्त रोतिसे उस शिला द्वारा आसनकी वेदिका तैयार करायी। साथ ही यह