________________
१५४
*पार्श्वनाथ-चरित्र .
.
........wwwwwwwwmummrammaamainamurrammaramanararar
यह सोचकर उपाध्यायने सवेरा होते ही तीनों शिष्योंको अपने पास बुलाया और उन्हें आटेका एक-एक मुर्गा देकर कहा“जहां कोई न देखे वहाँ ले जाकर इसे मार डालो!" गुरुकी यह बात सुनकर वसु और पर्वत तो अपने-अपने मुर्गेको लेकर किसी एकान्त स्थानमें गये और वहां उसे मार डाला ; किन्तु नारदसे ऐसा न हो सका। वह मुर्गेको लेकर नगरके बाहर एकान्तमें गया, किन्तु वहां वह सोचने लगा कि गुरुदेवने कहा है, कि जहां कोई न देखे वहां ले जाकर इसे मारना ; किन्तु यहां तो पक्षो और बृक्ष देखते हैं। इसलिये यह स्थान इसे मारने योग्य नहीं। इसके बाद वह उस मुर्गेको पर्वतकी एक गुफामें ले गया, किन्तु वहां उसे विचार आया कि यहां तो इसे लोकपाल और सिद्ध देखते हैं, इसलिये इसका घात कैसे हो सकता हैं ? साथ हो उसे यह भी विचार आया कि गुरुदेव तो बड़े दयालु और हिंसासे सर्वथा विमुख हैं। वे किसीकी हिंसा करनेका आदेश दे हो कैसे सकते हैं ? अवश्य उन्होंने मेरी परीक्षा लेनेके लिये हो मुझे यह कार्य सौंपा है। यह सोचते हुए वह मुर्गा लेकर वैसे ही गुरुके पास लौट आया और उनसे उसे न मारनेका कारण निवेदन किया। गुरु उसकी बात सुनकर तुरत समझ गये, कि अवश्य इसीको मोक्षकी प्राप्ति होगी। उन्होंने नारदकी पीठपर हाथफैरते हुए उसे आशीर्वाद दिया और उसकी सद्बुद्धिके लिये बार-बार उसकी खूब प्रशंसा की।
इसो समय वसु और पर्वत आ पहुँचे। इन दोनोंने कहा