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* द्वितीय सर्ग *
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उत्सुकता और भी बढ़ गयी और वह विशेष आग्रहसे वही प्रश्न पूछने लगा । नागकुमारने कहा- “यदि तू जाननाही चाहता है तो सुन | इस नगरके राजमार्गमें जो बड़ासा वट वृक्ष है, उसीकी शाखा पर लटकनेसे तेरी मृत्यु होगी । महाबलने कहा – “संभव है कि तेरी बात सच हो, किन्तु क्या तू भुझे कोई और बात ऐसी बतला सकता है, जिससे तेरी बातको सत्यता प्रमाणित हो और मुझे विश्वास हो जाय । नागकुमार ने कहा- “हां, बतला सकता हूं। कल राजमहलके शिखर परसे एक बढ़ई नीचे गिर पड़ेगा और उसकी मृत्यु हो जायगी । यदि मेरी यह बात सच निकले तो समझना कि तेरी मृप्युकी बात भी सच होगी । नागकुमारकी यह बात सुनकर महाबलने उसे छोड़ दिया । और वह शीघ्र ही वहांसे अन्तर्धान हो गया ।
दूसरे दिन नागकुमारके कथनानुसार ही दोपहर के वक्त महल परसे एक बढ़ई - सुथार गिर पड़ा। उसे गहरी चोट आयी और उसके कारण शीघ्र ही उसको मृत्यु हो गयी । बढ़ईकी यह गति देखकर महाबलको विश्वास हो गया कि नागकुमारने जो कहा है, वह सत्यही प्रमाणित होगा । अब वह मृत्युके भयले यहां तक घबड़ा गया, कि उसे भोजनसे भी अरुचि हो गयी । वास्तवमें प्राणियोंके लिये मृत्यु भय से बढ़कर दूसरा भय नहीं है । किसी कविने ठीक ही कहा है कि :
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"पंथसमा नस्थि जरा, दारिदसमो पराभवो नत्थि । मरणसमं नत्थि भयं, खुहासमा वेयणा नत्थि ।"