________________
* पाश्वनाथ-चरित्रउसे दपटते थे और पूछते थे कि तू यह क्या बक रहा है, किन्तु महाबल उनके प्रश्नका उत्तर दिये बिना ही चुपचाप उनके साथ चला जा रहा था। नगरमें पहुंचनेपर सिपाहियोंने चोरीके माल सहित महाबलको राजाके सम्मुख उपस्थित किया। उसे देखकर राजाको सन्देह हुआ अतः उसने पूछा--"तेरा शरीर और वेश सौम्य होनेपर भी तूने यह अनुचित कर्म क्यों किया? यह काम तेरे करने योग्य न था।" राजाकी यह बात सुनकर महाबलने कहा-"राजन् ! उचित और अनुचितका विचार छोड़ दीजिये। कर्मको गति बड़ी ही विचित्र है।
"रक्ष्यते तपसा नैव, न देधै नै च दानवैः ।
नीयते वट शाखायां, कर्मणाऽसौ महाबलः।' यह श्लोक सुनकर राजाको बड़ा आश्चर्य हुआ। वे वारम्बार महाबलसे इसका तात्पर्य पूछने लगे, किन्तु महाबलने इस श्लोक की पुनरावृत्ति करनेके सिवा और कुछ भी उत्तर न दियो । अन्तमें राजाने उसके इस ववनको मर्मगर्भित समझकर उसे बन्धनमुक्त कराया और उसे अभयदान देकर सारा वृत्तान्त पूछा। महाबलने अब महलमें सेंध लगाने, रानीको सर्प काटने और नागकुमारसे भेंट होनेका सब हाल विस्तार पूर्वक राजाको कह सुनाया। महाबलके मुखसे यह वृत्तान्त सुनकर राजाको रानीका स्मरण हो आया और यह जानकर कि कुटिल देवने ही उसका प्राण लिया था, उसे उसपर कुछ रोष भी आ गया। उसने कहा"हे क्रूरदैव ! हे बाल, स्त्री और वृद्धोंके घातक ! हे छिद्रान्वेषक !