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* पार्श्वनाथ-चरित्र * दयालु थे उन्होंने अजका अर्थ बकरा न बतलाया था। इसलिये हे मित्र! तू ऐसा अर्थ करके वृथा ही पाप भागी न बन ! किन्तु इन बातोंका पर्वतपर कोई प्रभाव न पड़ा। उसने कहा-नारद ! तू झूठ बोलता है। इस प्रकार यह बाद विवाद बढ़ गया। दोनोंने अपने अपने पक्षको सत्य प्रमाणित करनेके लिये जिह्वा छेदकी प्रतिज्ञा की, और यह तय किया कि वसुराजा सत्यवादी है और दोनोंका सहाध्यायी भी है, अतएव वह जो अर्थ बतलाये वही सत्य माना जाय।
नारदके चले जानेके बाद पर्वतकी माताने पर्वतको एकान्तमें बुलाकर कहा-“हे वत्स! नारदका कहना ठीक है। तेरे पिताने अजका अर्थ तीन वर्षके पुराने चावल ही बतलाया था। तूने जिह्वा छेदनकी प्रतिज्ञा क्यों की ! बिना विचार किये काम करनेपर इसी तरह संकटका सामना करना पड़ता है। निःसन्देह इस मामले में तेरो हार होगी।” पर्वतने कहा-"माता! अब क्या हो सकता है ? जो कुछ बदा होगा वही होगा।” अभिमानी जीवको कृत्याक त्यका ज्ञान ही कहां हो सकता है ! . पर्वतकी माताको इससे बड़ा दुःख हुआ। वह चुपचाप उसो समय वसुराजाके पास गयी, उसे देखते ही वसु खड़ा हो गया
और प्रणाम करनेके बाद नम्रता पूर्वक ६.नेका कारण पूछा। पर्वतकी माताने कहा-"राजन् ! मुझे पुत्र-भिक्षा दीजिये । पुत्रके बिना धन-धान्य किस काम आ सकते हैं ?" वसुने कहा-"माता! आपके पुत्रको मैं अपने भाईसे भी बढ़कर मानता हूँ । शीघ्र कहिये,