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* पाश्वनाथ चरित्र *
उपस्थित कर अन्तमें कहा, - “हे राजन् ! तू हमारा सहाध्यायी और सत्यवादी है, इसलिये सच-सच बतला कि गुरुजीने अज शब्द की क्या व्याख्या की थी ? तू हमारा साक्षी है। साथ ही तू अच्छी तरह जानता है, कि सत्यसे सभी अभिहित सिद्ध होता है | राज्याधिष्ठायक देव, लोकपाल और दिक्पाल सभी सुनते हैं, इसलिये हे राजन् ! सत्य ही बोलना । सूर्य चाहे पूर्व दिशा छोड़कर किसी दूसरी दिशामें उदय हों, मेरु चाहे चलित हो जाय, किन्तु सत्यवादी पुरुष कदापि झूठ नहीं बोलते ।”
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इस प्रकार उत्साह वर्धक शब्द सुननेपर भी, भाग्य में दुर्गति बदी थो, इसलिये वसुने अपनो कीर्तिका भी कोई खयाल न किया । उसने कहा – “गुरुजीने अजका अर्थ बकराही बतलाया था।” इस प्रकार राजाने झूठी साक्षी दी, इसलिये देवता उससे असन्तुष्ट हो गये और उसे सिंहासनपरसे नीचे ढकेल कर स्फटिककी शिला उठा ले गये । वसुराजा रक्तवमन करता हुआ ज्यों ही नीचे गिरा, त्योंही नारद यह कहता हुआ, कि चाण्डालकी तरह झूठी साक्षी देनेवालेका मुँह देखना भी पाप है अपने निवास स्थानको चला गया । वसुराजाकी शीघ्रही मृत्यु हो गयी और वह नरक गामी हुआ। उस अपराधीके सिंहासनपर बैठनेवाले उसके आठ पुत्रोंको भो क्रुद्ध देवताओंने इसी तरह सिंहासन से नीचे गिरा कर मार डाला ।
इस प्रकार असत्य वचनका फल जानकर सुन पुरुषको स्वप्नमें भी असत्य न बोलना चाहिये । जिस प्रकार छन्नेसे जल, विवेकसे