________________
mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwwwwwww
१३० . * पाश्वनाथ-चरित्र * दूर रही,मनसे चिन्तन की हुई हिंसा भी जीवका विघात करनेवाली
और नरकके दुःख देनेवाली सिद्ध होती है । इस सम्बन्धमे एक भिक्षुककी कथा इस प्रकार है। __ वैभारगिरिके उद्यानमें उद्यान-भोज करनेके लिये आये हुए लोगोंके पास एक भिक्षुक भिक्षा मांगने गया। किन्तु कर्म दोषसे उसे भिक्षा न मिली, इससे वह अपने अनमें .हने लगा,-"खाने पीनेकी चीजें अधिक होनेपर भो यह लोग मुझे भिक्षा नहीं देते इसलिये इन सबोंको मार डालना चाहिये।" यह सोचकर वह पहाड़पर चढ़ गया और वहाँसे एक बड़ो शिला नोचेकी ओर लुढ़का दी। शिला नीचे आ पड़नेपर न केवल उद्यानके बहुतसे मनुष्यही उसके नीचे दब गये, बल्कि उस शिलाके साथ वह भिक्षुक भी नीचे आ गिरा और वह भी उसा शिलाके नीचे दव कर मर गया। इसलिये तन, मन और वचन तोनों प्रकारकी जीव हिंसाका त्याग करना चाहिये। इस प्रकार जीवहिंसाके त्यागरूपी प्रथम अणुव्रतके सम्बन्धमें व्याख्यान देनेके बाद, गुरुदेव दूसरे व्रतके सम्बन्धमें व्याख्यान देने लगे।
दूसरे अणुव्रतका नाम मृषावाद विरमण है। उसके पाँच अतिचार वर्जन करने योग्य हैं। वे पांच अतिचार यह हैं(१) मिथ्या उपदेश (२ कलंक लगाना (३) गुह्य कथन (४) विश्ववस्त जनोंका गुप्त भेद जाहिर करना और (५) कूटलेख लिखना । यह पांचों अतिचार सर्वथा त्याज्य हैं। सत्य वचनसे देवता भी सहायता करते हैं। किसीने कहा भी है कि-"सत्यके प्रभावसे