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* द्वितीय सर्ग *
चन्द्रा और सर्गकी कथा।
इसी भरतक्षेत्रमें वर्धमानपुर नामक एक सुन्दर नगर है। वहाँ सिद्धड़ नामक एक कुल पुत्र रहता था। उसे चन्द्रा नामक एक स्त्री थी। कुछ दिनोंके बाद उन्हें एक पुत्रकी प्राप्ति हुई। उस पुत्रका नाम सर्ग था। कर्मवशात् यह तीनों बड़ेही दुःखी थे। वे जहां जाते और जो कुछ करते, वहां मानो पहलेसे हो उन्हें दुःख भेटनेके लिये तैयार रहता था। वास्तवमें दुःखी मनुष्यको इसी तरह पद-पदपर दुःखका सामना करना पड़ता है। कहा भी है,कि एक मनुष्यके शिरमें टाल थी, इसके कारण वह धूपसे व्याकुल हो कोई छायायुक्त स्थान खोजने लगा। खोजते-खोजते वह एक बेलके नीचे पहुंचा, परन्तु दुर्भाग्यवश उसे वहां भों सुख न मिल सका । ज्योंही वह वहां जाकर खड़ा हुआ, त्योंही वृक्षसे एक बेल टपककर उसके शिरपर आ गिरा और उससे उसका शिर फट गया! इसमें कोई सन्देह नहीं कि भाग्यहीन पुरुष जहां जाता है, वहीं आपत्तियां उसे घेरे रहती हैं। ___ सिद्धड़, चन्द्रा और सर्ग बड़ी कठिनाईसे अपनी जीविका अर्जन करते थे। उदरपूर्तिके निमित्त उन्हें न जाने क्या-क्या करना पड़ता था फिर भी उन्हें दोनों वक्त भरपेट भोजन भी न मिलता था। वास्तवमें पेट है भी ऐसा ही। इसके लिये मनुष्यको