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* पार्श्वनाथ चरित्र *
कुमार! यह कथा जान कर तुझे हिंसाका सर्वथा त्याग करना चाहिये और निरन्तर जीव दयाका पालन करना चाहिये ।”
अपने पूर्वजन्मका यह वृत्तान्त सुन राजाको उसो समय जाती स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ और उसका हृदय वैराग्य से पूरित हो गया। उसने गुरु देवसे कहा - "हे भगवन् ! यदि आप दया कर यहीं चतुर्मास व्यतीत करें, तो मेरा बड़ा उपकार हो !” मुनिराजने उसके अनुरोधसे वहीं शुद्ध उपाश्रयमें चतुर्मास व्यतीत किया । अनन्तर राजाने सब देशोंमें अमारिपडहकी घोषणा करायी । जिन मन्दिर बनवाये और नित्य गुरुके निकट धर्मोपदेश सुना । चतुर्मास पूर्ण होनेपर उसने चारित्र ग्रहण कर लिया और गुरुके साथ विहार करता रहा । अन्तमें केवल ज्ञान प्राप्तकर उसने परमपद प्राप्त किया । भीमकुमारका यह दृष्टान्त सुनकर धर्मार्थी पुरुषोंको निरन्तर दया धर्मका पालन करना चाहिये ।
विचारशील पुरुषको चाहिये कि कभी कठोर वचनोंका भी प्रयोग न करे । कठोर वचनोंका प्रयोग करनेसे कैसो हानि होती है यह चन्द्रा और सर्गकी कथा श्रवण करनेसे अच्छी तरह जाना जा सकता है । वह कथा इस प्रकार है :