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पाश्वनाचा wwwwwwwwwwwwwwwwimmmmmmmmmmmm
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* पार्श्वनाथ-चरित्र * बड़ा ही आश्चर्य हुआ। इसी समय कोई चारण श्रमण मुनि आकाशसे उतरते हुए कुमारको दिखाई दिये। उन्होंने नगरके बाहर डेरा डाला। कुमारने उन्हें देखते ही पहचान लिया कि यह मेरे गुरु हैं। उसने राक्षससे कहा-“हे राक्षसेन्द्र ! यह मेरे गुरु हैं । यदि तू अपने जन्मको सार्थक करना चाहता हो, तो इनकी वन्दना कर । शास्त्रोंमें भी कहा है कि :
"जिनेन्द्र प्रणिधानेन, गुरुणां वन्दनेन च। ___न तिष्ठति चिरं पापं, छिद्र हस्ते यथोदकम् ॥' अर्कात्-"जिनेन्द्र के ध्यानसे और गुरुके वन्दनसे जिस प्रकार छिद्रयुक्त हाथमें जल नहीं ठहरता उसी तरह पाप अधिक समय तक नहीं ठहरते।"
इसके बाद कुमार, मन्त्री, राक्षस और हेमरथ राजा सब मिल कर मुनिराजके पास जा उन्हें वन्दनकर यथा स्थान बैठ गये। मुनिराजका आगमन समाचार सुन अनेक नगर-निवासी भी वहाँ जा पहुंचे थे। सब लोगोंके इकट्ठा हो जानेपर मुनिराजने इस प्रकार धर्मोपदेश देना आरम्भ किया।
"हे भव्य प्राणियो! संसार रूपी जेलखानेके कषायरूपो चार चौकीदार हैं। जबतक यह चारों जाग्रत हों, तबतक मनुष्य उसमेंसे छूटकर मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकता है ? हे भव्यात्माओ! वे चार कषाय इस प्रकार है:-(१) क्रोध (२) मान (३) माया (४) लोभ । यह चारों कषाय संज्वलनादि भेदोंसे चार-चार प्रकारके हैं। संज्वलन कषाय एक पक्ष तक, प्रत्याख्यान चार मास तक,