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* पार्श्वनाथ-चरित्र -
बस न चलेगा तब वह सूक्ष्म रूप धारण कर भीमके हाथसे निकल कर अन्तर्धान हो गया। सिंहने जिस पुरुषको पकड़ा था वह वहीं बैठ रहा। भीमने अब उस पुरुषको साथ ले राजमन्दिर में प्रवेश किया। राज-मन्दिर बिलकुल सूना था। भीम उसे देखता हुआ उसके सातवें खण्डपर पहुँचा। वहां काष्ठको कई पुनलियां थीं। उन्होंने उसे स्वर्ण सिंहासनपर बैठाकर उससे स्नान करनेकी प्रार्थना की। भीमने कहा-"मेरा मित्र मतिसागर शहरके बाहर बैठा हुआ है। उसे भी यहां बुलवा दीजिये तो मैं स्नान कर सकता हूँ। भीमकुमारकी यह बात सुन पुतलियां मतिसागरको भी वहीं बुला लायीं । दोनों मित्रोंके एकत्र होनेपर पुतलियोंने अच्छी तरह स्नान और भोजन करा, उन्हें एक पलंगपर बैठाया। भीम और मतिसागर वहां बैठकर चकित दृष्टिसे चारों ओर देखने लगे। यह सारा नगर और महल सूना क्यों पड़ा है, यह जाननेके लिये वे बड़े उत्कंठित हो रहे थे, किन्तु उन्हें वहां कोई भी ऐसो मनुष्य दिखायी न देता था, जिससे वे इसका भेद पूछते। किन्तु उन्हें इस प्रकार अधिक समय तक उत्कंठित न रहना पड़ा, शीघ्रही वहां कुण्डलादि भूषणसे विभूषित एक देव प्रकट हुआ। उसने भीमसे कहा-“हे राजकुमार ! तेरा बलविक्रम देखकर मुझे बहुत ही प्रसन्नता प्राप्त हुई है । तुझे जो इच्छा हो वह तू मांग सकता है। भीमने कहा- यदि आप मुझपर वास्तवमें प्रसन्न हैं, तो कृपया पहले मुझे यह बतलाइये, कि आप कौन हैं और यह नगर इस प्रकार सूना क्यों