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* द्वितीय सर्ग *
१११ में आया हुआ शिकार मैं कैसे छोड़ सकता हूं ?" कुमारने कहा"मुझे मालूम होता है कि तू कोई देव है किन्तु किसी कारणवश तूने यह रूप धारण किया है। परन्तु देव कवलाहार नहीं करते। उन्हें किसीकी हिंसा न करनी चाहिये। अगर तू मनुष्यका मांस ही खाना चाहता है, तो तुझे मैं अपना मांस देता हूं। तू उससे अपनी क्षुधा तृप्त कर ; किन्तु इसे छोड़ दे। यह सुनकर सिंहने कहा- "हे सज्जन! तेरा कहना ठीक है, किन्तु इसने पूर्वजन्ममें मुझे इतना दुःख दिया है, कि मैं कह नहीं सकता। इस पापीको मैं सौ जन्मतक मारता रहूँ, तब भी मेरा कोप शान्त होना कठिन है।” कुमारने कहा-“हे भद्र! यह मनुष्य बड़ा ही दीन दिखाई देता है। दीनपर क्रोध कैसा ? तू इसे छोड़ दे। यदि तू कषाय जन्य पापोंसे दूर रहेगा तो दूसरे जन्ममें तुझ मोक्षकी प्राप्ति होगी।"
इस प्रकार राजकुमारने सिंहको बहुतेरा समझाया, किन्तु वह उस मनुष्यको छोड़नेके लिये राजी न हुआ। यह देखकर कुमारने सोचा, कि इसे ताड़ना दिये बिना काम न चलेगा। अतएव वह तलवार खींच कर सिंहकी ओर झपटा। सिंहने भी अपने शिकारको अपनी पीठपर रख लिया और मुह फैलाकर भीमपर आक्रमण किया। किन्तु भीमपर सफलता प्राप्त करना कोई सहज काम न था। सिंह ज्योंही समीप आया त्योंही भोमने दोनों हाथसे दोनों पैर पकड़कर उसे उठा लिया और शिरपर घुमाना आरम्भ किया। सिंहने जब देखा कि इससे कोई