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* पाश्वनाथ-चरित्र * समय तक यह चिन्ता न करनी पड़ी। शीघ्र ही वहाँ एक सप्ताङ्ग सज्जित हाथो आ पहुँचा और उसने उन दोनोंको अपनी सूंडसे पोठपर बैठाकर आकाश मार्गसे एक ओर ले चला। हाथीका यह काय देख, कुमारने चकित हो कहा-"मित्र ! देखो, इस संसारमें कैसे कैसे हाथी वर्तमान हैं ! मैने आजके पहले कभी ऐसा हाथी देखा न था। न जाने यह हम लोगोंको कहां ले जायगा । मित्र ने कहा-"कुमार! मुझे यह हाथी नहीं मालूम होता। बल्कि यह कोई देवता है। संभव आपके पुण्योदयसे यहां आया हो। अस्तु । अब तो यह जहां ले जाय वहां हमलोगोंको चलना चाहिये। पुण्यके प्रतापसे सब कुछ अच्छा ही होगा।
कुमार और मन्त्रो पुत्रमें इस तरहकी बातें हो ही रही थीं, कि वह हाथी एक निर्जन नगरके द्वारपर नीचे उतरा और उन दोनोंको वहां बैठाकर कहीं चलता बना । कुमारने मन्त्रो-पुत्रको वहीं छोड़ नगरमें प्रवेश किया। नगरमें चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। हाट-बाट धन धान्य और विविध वस्तुओंसे पूर्ण होनेपर भी वहां किसी मनुष्यका पता न था। आश्चर्य पूर्वक यह दृश्य देखता हुआ कुमार नगरके मध्य भागमें पहुँचा, वहां उसने देखा कि एक सिंह अपने मुखमें किसो मनुष्यको पकड़े खड़ा है। भीमने यह सोचकर, कि यह कोई विचित्र मामला है, सिंहसे विनय पूर्वक कहा--"हे सिंह ! इस पुरुषको छोड़ दे!” सिंहने यह सुन उस मनुष्यको अपने दोनों पैरोंके बीचमें दबा लिया और कुमारसे कहा-“हे सत्पुरुष ! मैं बहुत दिनोंका भूखा हूं। अव यह हाथ