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* पार्श्वनाथ-चरित्र * का त्याग कर। हे माता! धर्मका मूल जीव दया ही है, इससे सभी समीहित सिद्ध होते हैं। तुझे भी केवल जीव दया ही धारण करनी चाहिये। हिंसासे इस संसारमें परिभ्रमण करना पड़ता है, इसलिये हे देवि ! हिंसा छोड़कर उपशम धारण कर।"
भीमकी यह बातें सुनकर देवी लजित हो गयीं। वे मन-हीमन कहने लगीं-“अहो! इसमें यह कैसा पुरुषार्थ है ! कैसा सत्व है ? मनुष्य होकर भी इसकी मति कैसी विलक्षण है ! मुझे अवश्य ही इसकी बात माननी चाहिये। यह सोचकर उसने कहा-“हे वत्स! मैं आजसे सब जीवोंको आत्मवत् समझ कर उनकी रक्षा करूंगी।" यह कह देवी अन्तर्धान हो गयीं। भीमने अब अपने मित्र मतिसागरकी ओर देखा और उसे हृदयसे लगाकर उसका कुशल समाचार पूछा। मतिसागरने कहा-“हे प्रभो! मेरा हाल न पूछिये। जब आप महलसे चले आये और आपकी प्रियतमाने आपको वहां न देखा, तब उसने चौकीदारोंसे कहा। चौकीदारोंने रातभर आपको खोजा, पर जब आप न मिले, तब यह समाचार राजाको पहुचाया गया। राजाने भो चारों ओर आपकी खोज करायी, पर जब कहीं आपका पता न चला, तब वे बहुत हताश हो गये। उन्होंने सोचा कि अवश्य आपको कोई हरण कर ले गया है. इस विचारसे राजाको बड़ा दुःख हुआ और वे मूर्छित हो गये। आपकी मातायें भी इस शोक-संवादसे मूर्छित हो गयीं। चन्दनादिके सिंचनसे जब सबको किसी तरह होश आया, तब वे विलाप करने लगे। इसी