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* पार्श्वनाथ चरित्र *
रहते हैं, वे मानों समुद्र में डूबते समय नौकाको छोड़कर लहरोंको पकड़नेकी चेष्टा करते हैं। उत्तराध्ययन सूत्रमें भी कहा गया है कि जिस प्रकार कौड़ीके पीछे एक मनुष्यने हजार रत्न खो दिये थे और कच्चे आमके पीछे एक राजा अपने राज्यसे हाथ धो बैठा था, उसी तरह विषय-सुखके पीछे प्राणी अपना मनुष्य जन्म खो देते हैं। हे भव्य प्रणियो! इसमें कोई सन्देह नहीं कि अधिकांश मनुष्य इसी तरह निर्मूल्य और तुच्छ वस्तुओंके पीछे अपना बहुमूल्य और दुर्लभ जीवन नष्ट कर दिया करते हैं । उत्तराध्ययन सूत्रमें कौड़ीके पीछे रत्न खोनेवाले मनुष्यकी जो कथा अंकित है, वह बहुत ही रोचक होनेके कारण मैं तुम्हें सुनाता हूँ।
सोपारक नगरमें धनदत्त और देवदत्त नामक दो भाई रहते थे। वे श्रावक थे और हिल-मिलकर एक साथही व्यापार करते थे। इनमेंसे छोटा भाई जिनधर्म पर बहुत ही श्रद्धा रखता था। वह रोज दो वार प्रतिक्रमण और त्रिकालपूजा करता। इनसे जब समय मिलता तब वह व्यापारमें भी ध्यान देता। किन्तु बड़े भाईको यह पसन्द न था। वह चाहता था कि सारा समय व्यापारमें ही लगाया जाय। यह बात बहुत दिनोंतक उसके मनमें घूमती रहो । अन्तमें एक दिन उसने अवसर पाकर छोटे भाईसे कहा कि-हें बन्धु ! धन इकट्ठा करनेका उपयुक्त समय युवावस्था ही है, इसलिये अपनी समस्त शक्तियोंको इसी काममें लगाना उचित हैं। वृद्धावस्था आने पर, शरीर जब परिश्रम पूर्वक धनोपार्जन करने योग्य न रहे, तब सानन्द धर्मानुष्ठान किया जा सकता है।