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* पार्श्वनाथ चरित्र मुद्रालेखको सदा दूष्टिके सम्मुख रख, वह राज्यके समस्त कार्य सुचारु रूपसे सम्पादन किया करता था।
पाठकोंको हम पहले ही बतला चुके हैं कि युवावस्था प्राप्त होनेपर किरणवेगके पिताने पद्मावती नामक राज-कन्याके साथ उसका व्याह कर दिया था। सौभाग्यवश किरणवेगकी यह सह. धर्मिणी भी उसके अनुरूप ही थी। अपने पतिको अच्छी सलाह देना और उसे सद्प्रवृत्तियोंमें लगाये रखना वह अपना कर्तव्य समझती थी। किरणवेग भी ऐसी पत्नीको पाकर अपने भाग्यकी सराहना करता था। दोनों में बड़ाही प्रेम था। उसके प्रेमके फल स्वरूप यथा समय उनके एक पुत्र भी हुआ था। किरणवेगने उसका नाम धरणवेग रखा था। किरणवेग और पावती, इस पुत्रको देखकर बहुत ही प्रसन्न होते थे। इससे घर और बाहरसर्वत्र उनको सुख और आनन्दकी ही प्राप्ति होती थी। वे सब तरहसे सुखी और सन्तुष्ट थे।
इसी तरह दिनके बाद दिन और वर्षके बाद वर्ष आनन्दमें व्यतीत हो रहे थे, इतनेमें एक दिन विचरण करते हुए विजयभद्र नामक आचार्य वहाँ आ पहुँचे। नगरके बाहर किरणवेगका नन्दन वन नामक एक सुन्दर उद्यान था। उसी उद्यानमें उन्होंने डेरा डाला। उनके साथ अनेक स्वाध्याय-निष्ठ साधु भी थे। उन्हें देखते ही उद्यान-रक्षक किरणवेगके पास आया और उसे उनके आगमन समाचर कह सुनाया। विजयभद्र बहुत ही लब्ध प्रतिष्ठ और विख्यात मुनि थे। संसारमें ऐसा कौन होगा,