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* पार्श्वनाथ चरित्र *
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मन्त्रियोंकी यह बात सुन, राजाने किरणवेगको अपने पास बुला भेजा । किरणवेग उसी समय आ उपस्थित हुआ । राजाने बड़े प्रेमसे उसके सिरपर हाथ फेरते हुए कहा- देखो बेटा ! मैं अब वृद्ध हो चला, इसलिये इस राज्य भारसे मुक्त होता हूँ । तुम वीर हो, विद्वान् हो, सद्गुणी हो । सब तरहसे यह भार सम्हालने योग्य हो। इसलिये यह भार मैं तुम्होंको सौंपता हूँ । मेरे सभी मन्त्री बहुत पुराने और विश्वस्त हैं । वे राज-काजमें तुम्हें यथेष्ट सहायता पहुंचायेंगे। तुम भी सबका भली-भाँति पालन करना । कोई बड़ा अपराध करे तब भी केवल बाहर हीसे क्रोध दिखाना । समुद्रकी भाँति कभी मर्यादा न उलंघन करना । पण्डितोंकी संगति करना। द्यूतादि व्यसनोंसे सदा दूर रहना और दुर्गुणोंसे वचना । स्वामी, आमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोश, बल और मित्र - ये राज - लक्ष्मी के सप्ताङ्ग माने गये हैं। इनकी प्राण-पणसे रक्षा करना । राज करते समय स्वर्ग और नरकका ध्यान रखना भी आवश्यक है । राज्यके बाद नरककी प्राप्ति न हो, इसलिये धर्म - कार्यमें भी दत्तचित्त रहना । हे पुत्र ! यदि इन सब बातोंपर ख़याल रखोगे, तो इसमें कोई सन्देह नहीं, कि तुम भी सुखी रहोगे और अपने आदर्श कार्यों द्वारा अपने पूर्वजोंका मुख भी उज्ज्वल कर सकोगे ।
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किरणवेगने नत मस्तक हो कहा - पिताजी ! यद्यपि मैं इस गुरुतर भारको किसी प्रकार उठाने योग्य नहीं हूँ, फिर भी आप की आज्ञा शिरोधार्य करना मैं अपना परम कर्तव्य समझता हूँ ।