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* प्रथम सर्ग *
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हुई। यह देखकर मुनिने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहाकुमार ! तु धन्य है । बालक होने पर भी तेरी मति वृद्धोंके समान है । इस प्रकार भीमकुमारको प्रोत्साहन दे उसे व्रतमें स्थिर करनेके लिये मुनिने पुनः उसे धर्मोपदेश देते हुए कहा - " है भद्र ! निरपराध प्राणियोंकी हिंसा न करनेके सम्बन्धमें मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं । ध्यानसे सुन ।
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छः मनुष्य एक बार एक गांवको लूटने चले । एक मनुष्यने कहा- हमें सभी मनुष्य और पशुओंका नाश करना होगा। दूसरेने कहा- यह ठीक नहीं । हमें केवल मनुष्योंका हो नाश करना चाहिये । पशुओंका क्या दोष ? तीसरेने कहा- मनुष्यों में भी हमें केवल पुरुषोंकोही मारना उचित है। स्त्रियोंको नहीं । चौथेने कहा यह भी ठीक नहीं। पुरुषोंमेंसे हमें केवल उन्हीं पुरुषोंको मारना चाहिये, जिनके हाथमें कोई शस्त्र हो । पांचवेने कहा- मेरी रायमें हमें केवल उन्हीं पुरुषोंपर प्रहार करना चाहिये, जो हमारा मुकावला करें या हम पर वार करें । अन्यान्य शस्त्रधारियों की ओर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं । छठेने कहा- धन लूटना ही हमारा प्रधान कार्य है, इसलिये हम लोगोंको केवल इसी बात पर ध्यान देना चाहिये | मारकाटसे हमें क्या मतलब ? लुटेरोंके मनोभावोंकी इस मिन्नताके कारण कृष्ण, नोल, कपोत, तेजस, पद्म और शुक्ल यह छः लेश्यायें हुई । इसलिये सदा शुक्ल लेश्या ही धारण करनी चाहिये । यह उदाहरण बहुतही छोटा होने पर भी उत्तमजनोंको कुप्रवृत्तिसे निवृत्त करनेके लिये बहुत उपयोगी है ।”
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