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* पार्श्वनाथ चरित्र **
जानेको था । कापालिकको इच्छानुसार, एक प्रहर रात्रि व्यतीत होने पर कुमारने वीरवेश धारण कर उसके साथ श्मशानकी ओर प्रस्थान किया । श्मशान पहुँचने पर कापालिकने सर्व प्रथम वहां मण्डल बनाया। इसके बाद किसी देवताका स्मरण कर वह भीमकुमारको शिखा बांधने लगा; किन्तु भीमकुमार ऐसे कच्चे न थे, कि पहली ही चालमें मात हो जायँ । उन्होंने तुरन्त म्यानसे तलवार खींच ली और सिंहकी तरह पैंतरा बदलकर कहने लगे - " मेरा शिखाबन्ध कैसा ? मेरे लिये तो सत्व ही शिखाबन्ध है ।
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कापालिककी पहली चाल बेकार गयी । उसने देखा कि छलसे भीमकुमारका शिर लेना कठिन है, इसलिये अब बलसे काम लेना चाहिये। यह सोच कर उसमे भी तलवार खींच ली और आकाशके समान महान रूप धारण कर, क्रोधसे गर्जना करते हुए भीमसे कहा – “कुमार ! मैं तेरा शिर लिये विना तुझे न छोडूंगा । किन्तु मैं चाहता हूं कि तू स्वेच्छासे अपना शिर दे दे। इससे तू दूसरे जन्ममें सुखी होगा ।" कापालिककी यह बात सुन भीमने तड़प कर कहा - " हे चाण्डाल ! पाखंडी ! नीच ! तू मेरा शिर क्या लेगा, पहले अपनी जान तो बचा ले।"
भीमकुमारके मुंहसे यह शब्द निकलते न निकलते कापालिकने उस पर शस्त्र प्रहार किया । भीमने उससे अपनेको बचा लिया 1 साथ ही वह अपनी तलवारको चमकाता हुआ कापालिकके कंधे पर चढ़ बैठा। अगर भीम चाहता, तो उसे इस समय आसानीसे