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द्वितीय सर्ग *
१०५ होकर कहा -- " हे वत्स ! तुम अजेय होंगे। यही मेरा आशीर्वाद है।” कुमारने कहा -- “ जिनेश्वरकी कृपासे मैं अजेयही हूं फिर भी तुम्हारे आशीर्वादसे मुझे अब दूने बलकी प्राप्ति होगी और मैं दूने उत्साहसे अपना कर्तव्य पालन करूंगा।”
जिस समय यक्षिणो और भीमकुमार में यह बातचीत हो रही थी, उसी समय कहींसे कुमारको मधुर ध्वनि सुनायी दी । उसी समय उन्होंने चकित हो यक्षिणीसे पूछा - " माता ! यह ध्वनिः किसकी है और कहांसे आ रही है ?" यक्षिणीने कहा- “ इसी विन्ध्याचलपर अनेक मुनि चातुर्मासके कारण उपवास और स्वाध्याय कर रहे हैं, उसीको यह ध्वनि है । भीमने कहा“यदि आज्ञा हो तो मैं उन्हें बन्दन कर अपने जन्मको सार्थक कर आऊ ।” यक्षिणीने तुरत ही उसको आज्ञा दे दी। इसके बाद वह यक्षिणी के बताये हुए मार्गसे उन मुनिओंके पास जा उनकी वन्दनाकर वहीं बैठ गया । उसी समय यक्षिणी भी सपरिवार वहां आयो और मुनिओंको श्रद्धा पूर्वक वन्दन कर वह भी धर्मापदेश श्रवण करने लगी ।
उसी समय भीमको आकाशसे एक बड़ी भुजा पृथ्वीकी ओर आती हुई दिखायी दी । तुरत ही काल दण्डके समान वह भुजा अचानक भीमकुमारके पास आ पड़ी। आश्चर्य चकित हो वह उसकी ओर देख ही रहा था कि वह भुजा भोमका खड़ग लेकर वहांसे फिर आकाशकी ओर चल दी । भीम इसका कुछ भी रहस्य न समझ सका । उसका हृदय कौतूहलसे भर