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* पार्श्वनाथ-चरित्र पसन्द न था किन्तु इससे बचनेका भी कोई उपाय सुझाई न देता था। वह दोनों हाथसे माथा पकड़ कर बैठ गया और बड़ी देर तक कुछ सोचता रहा। अन्तमें उसे कोई बात याद आ गयी। स्मरण आते ही वह कुछ प्रसन्न हो उठा। मानों डूबतेको तिनकेका सहारा मिल गया। उसने आकाशकी ओर देखकर कहा"मुझे अरिहन्त, सिद्ध, साधु और केवली भाषित धर्मकी शरण प्राप्त हो-इस धर्म बलसे मेरी रक्षा हो !” यह कह, राजा अपने मनमें नमस्कार मन्त्रका चिन्तन करने लगा। फल यह हुआ कि उसी समय वहां एक नौका आ उपस्थित हुई। उसे देखकर मन्त्रीने कहा-"राजन् ! मालूम होता है कि किसी देवताने आप पर प्रसन्न होकर यह नौका भेज दी है। इसमें बैठकर अविलम्ब .पने प्राणकी रक्षा कीजिये।"
मन्त्रीको यह बात सुन, नौका पर चढ़नेके लिये ज्यों हो राजाने पैर उठाया, त्यों ही मानो दुनिया ही पलट गही। न कहीं बिजली, न कहीं पानी। बादलोंकी वह काली घटा, मेघोंकी वह भोषण गर्जना और वह मूशलधार वृष्टि न जाने कहां गायब हो गयो । राजा देखता है कि वह फिर उसी तरह सभाजनोंसे परिवेष्ठित अपनी राज सभामें बैठा है और उसी तरह नाट्याभिनय हो रहा है। यह कौतूक देखकर राजाके आश्चर्यका कोई ठिकाना न रहा। वह वारंवार अपनी आँखें मलकर इस बातकी परीक्षा करने लगा, कि मैं जागता हूं या निद्रामें पड़ा पड़ा कोई स्वप्न देख रहा हूं। अन्तमें जब उसे विश्वास हो गया कि वह जागृता