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प्रथम सर्ग *
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यहां रख दिया और उसके यहांसे आटा दाल आदि चीजें लेकर, वह भोजन बनानेके लिये एक तालाब के किनारे गया । आटे दालका मूल्य चुकानेके बाद उसके पास केवल एक फूटो कौड़ी ही बची हुई थी। उस कौड़ीको तालाबकी पाल पर रख, उसने भोजन बनाया खाया; किन्तु चलते समय वहांसे वह कौड़ी उठाना भूल गया। वहांसे वह बनियेकी दूकान पर आया और उससे अपना सारा सामान ले, अपने गांवकी ओर चला ।
शाम हो चली थी और धनदत्त आजही अपने घर पहुंचना चाहता था, इसलिये शीघ्रतापूर्वक वह रास्ता तय कर रहा था । दुर्भाग्यवश कुछ दूर जानेके बाद, उसे उस कौड़ीकी याद आ गयी । धनदत्त भला उसे कब छोड़नेवाला था । वह कहने लगा कि कौड़ीसे ही पैसा बनता है, इसलिये कौड़ीको योंही छोड़ देना ठीक नहीं; यह सोच वह उसी समय पीछेको लौटा; किन्तु उसी समय उसे यह बिचार हो आया कि रात हो चली हैं, इसलिये रत्नोंकी यह नली साथ रखना ठीक नहीं। रास्तेमें कोई लूट लेगा तो मैं कहींका न रहूंगा । अतः उसने उस नलीको वहीं एक बड़े पीपलके नीचे गाड़ दिया और उस तालाबकी ओर प्रस्थान किया । किन्तु तालाब तक पहुँचते ही पहुँते रातकी अँधेरी झुक आयो और रास्ता चलने लायक न रहा । फलतः उसे लाचार हो, रात भरके लिये, उसी गांवमें रुक जाना पड़ा ।
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उधर जिस पीपलके नीचे धनदत्तने अपनी नली गाड़ी थी, उस पर संयोगवश एक लकड़हारा बैठा हुआ था । जब धनदत्त