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८४ . * पार्श्वनाथ चरित्र * वहांसे चला गया, तब वह वृक्ष परसे नीचे उतरा। उसने कौतूहलवश वह नली खोद ली और उसे अपने घर ले गया। अनन्तर उसने वहां दीपकके प्रकाशमें उन रत्नोंको निकालकर देखा । जन्मभर लकड़ियाँ काट-काटकर बेचनेवाला वह बेचारा रत्नोंका हाल क्या जाने। उन्हें बहुत देरतक उलट पलटकर देखनेके बाद उसने स्थिर किया, कि यह कांचके चमकीले टुकड़े मालूम होते हैं । मेरे लिये तो बेकार हैं, अतः कल इन्हें फिसीको दे दूंगा। शायद इनके बदले मुझे कुछ अन्न मिल जाय। यह सोचकर दूसरे दिन सवेरे ही वह लकड़ियोंका गट्ठर माथे रख, उस नलीको धोतामें बांध, शहरकी ओर चला।
इधर धनदत्तका भाई देवदत्त पूर्ववत् घरका काम देख रहा था। जब कई वर्ष बीत गये और धनदत्तके कोई समाचार न मिले, तब उसे चिन्ता होने लगी । घरमें उसकी माता भी उसे जब-तब धनदत्तका पता लगानेको कहा करती थी ; किन्तु परदेशीका पता लगाना कोई सहज काम न था। देवदत्तको सूझ ही न पड़ता था कि किसप्रकार पता लगाया जाय। बहुत दिनोंतक विचार करनेके बाद उसने सोचा कि रोज सुबह शहरके बाहर बैठा जाय,
और परदेशसे लौटे हुए लोगोंसे पूछताछ की जाय, तो शायद किसी प्रकार पता लग जाय । दूसरे ही दिन सुबह उसने पानीका लोटा उठाया और शहरके बहरकी राह ली। ___ संयोगवश शहरके बाहर सर्वप्रथम वह लकड़हारा हो देवदत्त को सामने मिला । लकड़हारेको उस समय बड़ी प्यास लगी हुई