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* प्रथम सर्ग*
(१) वध (२) बन्धन (३) विच्छेद (४) अतिभार आरोपण किंवा प्रहार और (५) अन्नादिकका निरोध। यह पांचो अतिचार भी हिंसाही माने गये हैं। पशुप्रभृति प्राणियोंकी निर्दयता पूर्वक हत्या करनेको वध कहते हैं । रस्सी आदिसे बांध रखनेको बन्धन कहते हैं । कान, नाक गला या पूछ आदि अंगोंको छेदने या काटनेका नाम विच्छेद है । दण्ड आदिसे निर्दयता पूर्वक पशुओंको पीटना और इनपर शक्तिसे अधिक भार लादना अतिभार आरोपण कहलाता है। यथा समय पशुओंको खाने पीनेको न देना अन्नादिकका निरोध है। यह पांचों अतिचार त्याज्य हैं। जो प्राणी स्वयं जीव रक्षा करता है और दूसरेसे कराता है, वह अद्भुत समृद्धिका अधिकारी होता है। इस सम्बन्धमें भीमकुमारकी कथा सुनने योग्य है । वह मैं सुनाता हूँ।
कमलपुर नामक नगरमें किसी समय हरिवाहन नामक एक राजा राज करता था। वह बहुतही न्याय-निष्ट और प्रजापालक था, उसके मदनसुन्दरी नामक एक पटरानो थी, वह अपने महलमें एक दिन जब सुखकी नींद सो रही थी, तब स्वप्नमें उसे एक सिंह अपने पास खड़ा दिखायी दिया। नींद खुलनेपर उसने यह हाल राजासे कहा । राजाने कहा-मालूम होता है कि यह स्वप्न बहुत ही अच्छा है, फिर भी मैं किसी योग्य विद्वानको बुलाकर इसका फल पूछंगा। ___ भोजनादिसे निवृत्त होनेपर राजा जब राज-सभामें गया, तब एक विद्वान ब्राह्मणसे उपरोक स्वप्नका फल पूछा।