________________
* प्रथम सगे
....nahamaramairaanaanawarrrrrrrr
यदि आपकी यही इच्छा है कि मैं इस भारको सम्हाल लूं, तो मैं इसके लिये तैयार हूँ।
किरणवेगकी यह बात सुन राजाको बहुत ही आनन्द हुआ। उसने बड़ी प्रसन्नताके साथ राज-काजकी सभी बातें किरणवेगको समझा दी। किरणवेगने भी सारी बातें बड़ी आसानीसे समझ लो।अनन्तर राज्य-भारसे निवृत्त हो, राजाने श्रुतसागर नामक चारणमुनिके निकट दीक्षा ले ली और निरतिचार चरित्र एवम् अनशन द्वारा कैवल्य-शानकी प्राप्ति कर अन्तमें मोक्ष प्राप्त किया। ____ इधर किरणवेग अपने पिताकी राज-सम्पत्ति प्राप्त कर न्याय
और नीति पूर्वक प्रजाफा पालन करने लगा। वह ज्ञानी होनेपर भी मौन रहता था। शक्तिमान होनेपर भी क्षमासे ही काम लेता था और दानी होनेपर भी आत्म-श्लाघाको अपने निकट न आने देता था। इन्हीं गुणोंके कारण चारों ओर उसकी प्रशंसा होती थी और प्रजा उसके लिये प्राण देनेको तैयार रहती थी। उसका दृढ़ निश्चय यह था कि :
मिन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु,
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ॥ अद्यव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्यायाल्पथः प्रविचलन्ति पदं न धोराः॥ अर्थात्- नोति-निपुण लोग निन्दा करें या स्तुति करें,लक्ष्मी आये या जाये और मृत्यु इसी समय हो या युगान्तरमें हो, धीर पुरुष किसी भी अवस्थामें न्याय-पथसे विचलित नहीं होते।" इसी